अंक 37वर्ष 10दिसंबर 2017

इसी दिसंबर २०१७ में हिंदी साहित्य सरिता १० साल पूरे होंगे। दस सालों में कुल ३६ अंक ज्यादा मायने नहीं रखते। जब हमने इसे सुरु किया था तो इन्टरनेट में साहित्य की मौजुदगी बहुत कम थी। आजकल तो एक बाढ़ सी आ गई है, नेट पत्रिकाओं की, ब्लागों की और नजाने क्याक्या की ! दस साल में ३६ अंकों की सामग्री को एक उपलब्धि कहना बिन काम किए शेखी बघारने जैसी बात हो गई। इसके लिए सुधी पाठकों से क्षमा याचना करना चाहता हूँ।

जिदंगी के रास्ते में सबसे आगे आनेवाली तीन चीजें हैं – रोटी, कपड़ा और मकान। मैं भी इन्ही तीनों की उल्झन में फंस गया। चाहता कभी नहीं था कि हिंदी साहित्य सरिता देर से निकले, न अब चाहता हूँ, लेकिन हम अपना रास्ता अपने आप कहाँ तय कर पाते हैं ? जिंदगी से जुझते जुझते इतने साल हो गए। मैं पाठकों से यह वादा नहीं कर रहा की आगे से नियमित चलाऊँगा। लेकिन मुकर भी नहीं रहा हूँ। कोशिश करूँगा माँह में एक अंक दे सकूँ। नहीं तो तीन माह में एक अंक दे सकूँ।

नेपाली साहित्य को हिंदी में अनुवाद कर हिंदी के उस विशाल संसार के आगे पेश करने की एक जुर्रत कर बैठा था, जिसे सुधी पाठकों ने जितना प्यार और भरोसा दिया है उससे मैं कभी उऋण नहीं हो पाउँगा। मेरी पहल छोटी सी थी, लेकिन आप लोगों का अपनापन बड़ा था।

हिंदी मेरी मातृभाषा नहीं है। लेकिन मैं हिंदी से जिस तरह जुड़ा हूँ उसे महज शब्दों में बयाँ नहीं कर सकता। जाहिर है, मातृभाषा न होने के कारण और औपचारिक पढ़ाइ न होने के कारण गलतियाँ अखरती होंगी। इसके लिए भी मुझे सुधी पाठकों से क्षमा माँगने के अलावा कोई रास्ता नहीं है।

पिछले कुछ अंकों से धारावाहिक उपन्यास दे रहा था। अब मुझे लगा है कि इस तरीके से पत्रिका के अंक परोसने से पाठकों का क्या होगा। पिछला अंक अप्रैल का था। अब दिसम्बर का है। समय की इस विशाल अवधि में पाठकगण पहले की कड़ी क्योंकर याद करने लगे ? इसलिए अपने आप ही एक क्रूर फैसला ले लिया है – जबतक नियमित अवधि में अंक नहीं निकाले जाएँगे, तब तक धारावाहिक प्रकाशन बंद कर देते हैं। अगर कोई पाठक रुष्ट होते हैं तो हम क्षमा प्रार्थी हैं।

इस अंक से हम एक और सुरुवात कर रहे हैं – अंतराष्ट्रीय हिंदी साहित्य। भारत सहित विश्वभर के लेखकों से रचनाएँ आमंत्रित हैं। जहाँ तक हो सके मौलिक रचनाएँ ही भेजेँ।  वैसे किसी भी भाषा से हिंदी में किए गए अनुवाद का भी हम स्वागत करते हैं।

सादर अभिनंदन। 

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टिप्पणियाँ

आर बी शर्मा पागल(शिक्षक&कवि)
बहुत सुंदर पहल साधवाद


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