अंक 37 | वर्ष 10 | दिसंबर 2017 |
सपना
- नवराज पराजुली
सायद माँ और पिताजी के बीच सोने से
मेरे हाथ पिताजी के जैसे हो रहे थे
पैर माँ के जैसे
पलकें पिताजी की जैसी होती गईं
आँख माँ की जैसी
मेरी उन आँखों नें
एक रात
एक ऐसा सपना देखा लगा मैं जगा हुआ हूँ
स्कूल से भागकर नजदीक की नदी मैं तैरते वक़्त
मैंने नदी के पानी में अपना पानी मिला दिया
लेकिन
बिछौना भीग गया था
मुझे दूसरे पलंग पर सरका दिया गया
फिर कभी मैं
पिताजी और माँ के बीच सो नहीं पाया
मेरे हाथ मेरे जैसे होने लगे
पैर मेरे जैसे
पलकें मेरी जैसी होने लगीं
आँख मेरी जैसी
उस वक़्त
एक छोटे सपने ने
मुझे माँ-पिताजी से एक कमरा दूर कर दिया
आज तो मेरे पास
बड़ा सा सपना है।
***
नेपाली से अनुवादः कुमुद अधिकारी
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