अँक 38 | वर्ष 14 | जुन 2021 |
बारह बजकर पैंतीस मिनट पर
- किशोर पहाड़ी
उसने नींद में महसूस किया- तलवे पर एक ठंडा स्पर्श। वह चौंक गया। उसकी आँखें खुल गईं।
कमरा अंधकार का गुलूबंध पहने हुए था और कमरें में सड़ते हुए लाश की जैसी दुर्गंध फैली हुई थी। कुछ देर बाद उसने महसूस किया- कमरे में दूसरा कोई है। कुछ आवाज निकल रही थी। शायद चोर आया हो? वह अपने स्तर पर अनुमान करने लगा।
कुछ देर बाद कमरे से लास की जैसी दुर्गंध अचानक गायब हो गई। उसने उठकर बत्ती जलाई। लेकिन कमरे में कोई नहीं था। कतई नहीं लगता था की चोर आया है। उसले चारों ओर देखा। सामने दीवार पर अपने मृत पिताजी की तसवीर लटकी हुई थी। कल तक तो तसवीर में पिताजी का मुस्कुराता हुआ चेहरा था। लेकिन आज वह चेहरा गमगीन और गंभीर दिख रहा था। वह किसी अज्ञात आश्चर्य से उठ खड़ा हुआ। तसवीर में पिताजी गंभीर मुद्रा में थे। उसने वर्षों से पिताजी की तसवीरको मुस्कुराते हुए ही देखा है। आज अचानक क्या हुआ है? – वह द्विविधा में पड़ गया।
सपना है या हकीकत, वह तय नहीं कर पाया। फिर उसने बिछौने की तरफ देखा – वह सो नहीं रहा था। यानि की सपना नहीं था, हकीकत थी।
वह अचंभित हो ही रहा था कि एक भारी सी आवाज गूँज गई, "बेटे !"
यह पिताजी की आवाज थी। वह अच्छी तरह पहचानता था इस आवाज को। लेकिन उसके पिताजी को स्वर्ग पधारे सात वर्ष हो चुके थे और उस वक्त घड़ी में बारह बजकर पैंतीस मिनट हुए थे। फोटो के भाव परिवर्तन और यह मृत व्यक्ति की आवाज।..... क्या हो रहा है ? वह समझ नहीं पा रहा था। अनायास उसके मुंह से निकल गया, "पिताजी !"
"विपिन, क्या तू ने मोटरसाइकिल खरीद ली ? यह सच है ?" अब उसकी दृष्टि स्पष्ट हो गई। यह आवाज पिताजी की तसवीर से आ रही थी। पिताजी तसवीर से बोल रहे थे।
उसे यह पल काफी मुशकिल लगा। वह चुपचाप फोटो देख रहा था।
"मुझे जल्दी जबाव दे, विपिन। मैं वक़्त को ज्यादा देर तक पकड़कर नहीं रख सकता।" फोटो से आवाज निकली।
"कैसा जबाव ? यह अद्भूत घटना कैसे हो रही है ? आप कहाँ से बोल रहे हैं ?" वह भीतर से अव्यवस्थित हो चिल्लाया।
"पहले मेरे सवाल का जबाव दे। तू ने मोटर साइकिल खरीदी है, सच है न?"
"जी, हाँ।"
"तू ने यह ठीक नहीं किया विपिन। मुझे मालूम है ... मेरे मरने के बाद ऑफिससे मिले पैसों से तू ने मोटर साइकल खरीदी है। यह अच्छी बात नहीं है। मुझे मालूम है, उस पैसे से तू ने एक पैसा भी तेरी माँ को नहीं दिया। मुझे मालूम है विपिन, सब मालूम है।"
वह टकटकी बाँधे देखता रहा।
"मेरी ये बातें तुझे पसंद न हों शायद। लेकिन तू ने जो काम किया है, वह मुझे पंसद नहीं है। प्राविडेंट फन्ड से मिले पैसे, छुट्टी के बदले में आए पैसे, मेरे परिश्रम के पैसे तूने अपनी सुविधा के लिए क्यों खर्च किए ? तू ने उसी पैसे से अपनी बीवी और बच्चे के लिए महँगे कपड़े खरीदे, पर माँ के लिए कुछ भी नहीं किया। अभी जरा सुन तो, उस कमरें में शोभा खाँस रही है। बिमार माँ को दवाई नहीं देना क्या ? डॉक्टर को नहीं दिखाना क्या ?
उसका ध्यान दूसरे कमरे मे चला गया। माँ की तीव्र खाँसी की आवाज आ रही थी और वह स्पष्ट सुन रहा था।
"शोभा की इस खाँसी से तेरे दिल में दर्द नहीं उठता बेटा ?"
वह परेशान हो गया।
"खैर, जाने दे। बहू किधर है ?"
"मायके गई है।"
"शादी के बाद से तुझे अपनी बीवी से प्रिय कोई नहीं लगता ? यह तो अच्छा नहीं हुआ।"
वह फिर परेशान हो गया।
"खैर, रहने दे यह भी। तू कहाँ नौकरी कर रहा है?"
"स्वास्थ्य सेवा विभाग में।"
"बढ़िया। स्वास्थ सेवा विभाग के रिजाल जी कैसे हैं ?"
"उन्होंने तो नौकरी छोड़ दी पिताजी।"
"मल्ल जी कहाँ हैं आजकल ?"
"उनका तबादला पोखरा हो गया पिताजी।"
"तू भी दो-एक बरस राजधानी से बाहर काम कर। प्रॉमोसन में अंक ज्यादा आएगें। समझा कि नहीं ? हो सके तू सुदूर पश्चिमांचल जाकर काम कर। हाँ मल्ल जी से दो सौ पचास रूपये लेने हैं, उन्होंने दिया कि नहीं ?
उसने फिर घड़ी की तरफ नजर दौड़ाई। बारह बजकर पैंतीस मिनट हुए थे।
"किसन के साथ से भी एक सौ उन्नीस रूपये लेने हैं। लिया कि नहीं ? और हरिमान भैया हैं न – उनसे मैंने पच्चीस सौ रूपये लिए थे घर बनाने की खातिर। तू वह रकम चुका दे।"
सात वर्ष पहले के हिसाब-किताब ने उसका दिमाग उथलपुथल कर दिया था।
"पिताजी ! हरिमान भैया तो गुजर गए।"
उसके पिताजी कुछ देर के लिए चुप हो गए।
"पिछवाड़े की जमीन क्यों बंजर छोड़ दी ? मैंने एक रामफलका पेड़ लगाया था, तू ने वह भी काट दिया। क्यों, घर के आड़े आ रही थी, इसलिए ? उस जमीन को बंजर मत रख, विपिन। वहाँ आलू और मक्का बो दे। आलू अच्छे निकलेंगे वहाँ। सामने बागीचे में भी सब फूल सुख गए हैं। उन्हें बार बार पानी देना पड़ता है। क्यों विपिन, तुझे वसंत पसंद नही?"
अब तक वह संयमित हो चुका था। पिताजी से पूछा, "पिताजी ! आज कैसे इधर पधारे ?"
"ऐसे ही, घुमते हुए आ गया।"
"पिताजी, आप उधर अच्छे हैं न?"
अपने बेटे के इस स्नेहासक्त सवाल ने मृत बूढ़े बापको रुआँसा कर दिया। रोनी आवाज में बोला, "मैं ठीक हूँ, बेटे। लेकिन मुझे मालूम है, तुम लोगों को शांति नहीं है। इधर तेरे देश के बारे में बहुत बातें होती हैं। सुना अब कोई महान आदमी नहीं भेजेंगे। निकृष्ट लोग ही भेजेंगे और देश को निकम्मा बना देंगे।"
त्रास के मारे उसकी कँपकँपी छूट गई।
"तुझे मालूम है विपिन ? मैंने यहाँ भी एक राम फल का पेड़ लगाया है।" उसके पिताजी ने उत्साहित हो कर कहा।
लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। निराशा और त्रास मिश्रित चेहरा लेकर सिर्फ़ देखता रहा।
"हाँ, पता चला है, तुने शराब भी पीनी सुरु कर दी?"
"हाँ, पिताजी !"
"वाह ! तेरी हिम्मत।" उसके पिताजी ताना मारने लगे, "जब मैं जिंदा था, तू मुझसे आँख उठाकर बातें भी नहीं कर सकता था। जब मर गया तो शौर्य से कह रहा है – मैं शराब पीता हूँ।"
वक़्त चुपचाप खिसक रहा था। नहीं, खिसक नहीं रहा था। इस वक़्त भी घड़ी में बारह बजकर पैंतीस मिनट ही हुए थे।
"जाने दे। दारू पी। चरस और मैंडेक्स भी खा ले। माँ को कोई दवा मत दे। बस, तू अकेले ही बड़ा आदमी बन जा। सिर्फ अपनी बीवी की फिकर कर। तेरी बूढ़ी माँ.... मार दे उसको। तू बहुत बड़ा आदमी बन जा, विपिन। बहुत बड़ा आदमी।"
और तसवीर हिलने लगी।
तसवीर के हिलने के साथ ही उसे लगा वह सोना जड़ित पोशाक पहने खड़ा है। उसने महसूस किया वह सम्राट बन गया है। साथ साथ पिताजी की तसवीर अपने आप खूँटी से निकल गई और जमीन से टकरा गई। वह सम्राट का पोशाक और मुकुट लगाए ही बेहोश होकर जमीन पसर गया।
दूसरे दिन सवा नौ बजे विपिन टूटे हुए शीशे के टुकड़े और तसवीर बुहार रहा था। उधर के कमरे में माँ खास रही थी।
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मूल नेपाली से रूपांतर - कुमुद
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