अङ्क 32वर्ष 6अगस्त 2013

पिछले अंक से जारी

राधा- (चौथी किस्त)

- कृष्ण धरावासी

 

रासलीला की घटना की खबर जंगल की आग की तरह पूरे गोकुल में फैल गई। हर घर में इस घटना की चर्चाएँ होनें लगीं। गोपिनियों के माँ-बाप बुरी तरह से डाँटने फटकारने लगे। लाज, शर्म सब त्यागकर एक युवक के संग जंगल में बिताने की बात से बेनामी फैलती गई। सबसे ज्यादा दबाव मुझे पड़ा था। सभी गोपिनियों नें बात लगाई थी की यह सब मेरे नेतृत्व में हुआ है। ब्रज के राजा वृषभानु की बेटी होकर जिस अनुशासन में बैठना चाहिए था, न बैठना, इसके ऊपर जनता की बेटियों को भड़काकर गलत राह पकड़ने को उकसाना – ऐसा आरोप मुझे लगाया गया था। बाबा ने माँ द्वारा मुझे चेतावनी दिलाई। माँ लम्बी भूमिका के साथ मुझे समझाने लगी कि मुझे अपने कुल-धर्म का खयाल करना चाहिए, पिताजी के प्रतिष्ठा को ध्यान देना चाहिए।

नन्द राय गोकुल के लोकप्रिय नागरिक थे। सारे गोप नन्दराय के भक्त जैसे लगते। नन्द राय की वही सरल स्वभाव के कारण मेरे पिताजी से ज्यादा उनसे लोग खुलकर बातें करते। नन्द राय के सरलता के कारण ही कृष्ण भी सब के प्यारे हो गए थे। उनके बेटे के रूपमे कृष्णद्वारा गाँव में किए गए उपद्रवों को लोग नजरअंदाज कर जाते। कभीकभार कृष्ण के उपद्रव से तंग आकर लोग उनके यहाँ फरियाद करने भी चले जाते।

ऐसा कहा जाता था कि कृष्ण का जन्म भाद्रकृष्ण अष्टमी के दिन हुआ था। कहा जाता उस रात भारी वर्षा हुई थी। यमुना में सबसे बड़ी बाढ़ आई थी। सारा गोकुल त्राहिमाम हो गया था। सभीको लगा कि प्रलय हुआ है। मेरी माँ कहती – मेरे पिता वृषभानुने अनुमान लगाया था कि वही रात शायद प्रलय की अन्तिम रात है। लेकिन वर्षा कम होती गई थी और यमुना भी अपने आकार में आ गई थी। सुबह सबेरे चारों ओर यही चर्चा थी की नन्द राय के घर में रात को भारी बारिस के समय एक पुत्र जन्मा है। नन्द राय की पत्‍नी यशोदा की प्रशव पीड़ा कम करने कोई धाई नहीं आ पाई थी।

कृष्ण के जन्म को पूरे गोकुल में उत्सव के रूपमे लिया गया। चूँकी नन्द राय की सन्तान एक अरसे के बाद जनमी थी, इसलिए इस जन्म की चर्चा होना वाजिब था। उन्होंने भी पुत्र जन्मोत्सव की खुसियाँ मनाने के लिए रूप में पूरे गोकुल में मिठाइयाँ बाँटी। गोपिनियों के मध्य बालक की खूब तारिफ होती। ऐसी ताऱिफ पहले किसी भी बालक की नहीं हुई थी। यूँ तो कृष्ण का नयाँ रूप, सौन्दर्य खास कुछ नहीं था, फिर भी नन्द राय और यशोदा की खातिर सब तारिफें करते।

कृष्ण के जन्म की चर्चा चारों ओर फैलती गई। दूर से लोग कृष्ण को देखने आने लगे। बातों ही बातों में कृष्ण को एक चमत्कारी बालक के रूप में प्रचार किया जाने लगा। कृष्ण की रूलाई, उसका हँसना, उसके सामान्य कार्य भी विशेष रूप से चर्चित होने लगे। बालक स्वस्थ था, जल्दी से बड़ा होने लगा। कृष्णद्वारा किए गए बाल विग्रह भी प्रशंसित होने लगे। उनके उपद्रव स्वीकार्य होते गए। कृष्ण पूरे गाँवका लाड़ले बनते गए। लोग उन्हें सबसे बहादुर, बड़ा, शक्तिशाली, जो भी कर सकने वाला, अनूठे क्षमता धारी कहकर उनका तारिफ करने लगे। अपनी तारिफें सुनकर कृष्ण दिन पर दिन अनूठे कार्य करने लग गए। लोग कहते – “न कर पाने का दिखावा कर रहा है, वह कर सकता है।“ ऐसी बातें सुनसुनकर कृष्ण अपने अंदर शक्ति की उत्पति अनुभव करने लगे। उन्हे लगा डर नाम की चीज से उनका परिचय ही नहीं है। जिधर देखो अपनी तारिफें सुनते। तारिफें सुनते सुनते उन्हें ऐसा लगने लगा कि सचमुच वे शक्तिशाली हो गए हैं। सारा गोकुल कृष्ण को चमत्कारी शक्ति वाले बालक के रूप में स्थापित करने लग गया।

आदमियों की क्षमताएँ अथाह हैं। प्रकृति की हर क्षमताएँ लोगों के भीतर सूक्ष्म रूप से छिपी बैठी हैं। अगर उन्हें जगाया नहीं गया तो वे मृत शक्ति के रूपमें जमा रहते हैं। भौतिक ताकत व शक्ति सब मानसिक शक्ति से जुड़े रहते हैं। मानसिक शक्ति से ही शरीर की शक्ति प्रदर्शित होती है। मानसिक कमजोरी तुरंत शारीरिक शक्ति को क्षीण करती है। कृष्ण के लिए पूरे गाँव ने ऐसी मानसिक शक्ति व साहस जगा दिया कि वह अपने भीतर हीनता, कमजोरी, पराजय के भाव कभी समझ ही नहीं पाए। शरीर की ताकत मानसिक शक्ति से जुड़ी होने के कारण वह आत्मशक्तिमें संगृहीत होता है। प्रकृति की हर क्षमता जैसे लोगों में होती है, कृष्ण में भी थी। लेकिन जो आत्मबल लोग अपने शरीर में जगा नहीं पाए वह कृष्ण के शरीर में जगाते गए। गोकुलवासी यह जान नहीं पाए की उनकी लगातार की प्रशंसा से कृष्ण में प्राकृतिक विविधता जाग गई है। लोग दिन पर दिन उनमें चमत्कारिक गुण देखते गए। कृष्णद्वारा किए गए छोटे से काम भी बड़े काम के रूपमें प्रशंसित होते गए। उन्हें भी यह लगने लगा कि वे जरूर औरों से अलग हैं और विशेष हैं।

बालक कृष्ण की प्रशंसा देश विदेश फैलती गई। नन्द राय के घर जन्मा बालक अनूठा और चमत्कारी है। छोटी उम्र में ही वह ऐसे काम करता है जो बड़े उम्रवाले भी नहीं कर सकते। ऐसी बातें फैलती गईं।

हमें भी लगता कृष्ण हमारे युग के सबसे सुंदर साथी हैं। वे हमसे दिल्लगी करते, हमें रूलाते, हसाँते और खुस रखते। सभी को उनसे मिलने व खेलने का दिल करता। गोकुल भर के हम सभी बच्चे कृष्ण के साथ ही होते। कृष्ण हर रोज कुछ न कुछ नया करते और हम देखते रहते। ऐसे कृष्ण हमारी आदत बन गए थे। जिस दिन वे न मिलते हम सब उदास हो जातीं। हम उन्हें ढूँढ़ने के लिए इधर उधर दौड़तीं। कृष्ण कभी पेड़ की चोटी पर छिपे मिलते, कभी झाड़ी में छिप रहे मिलते तो कभी मवेशियों के झुंड में छिप रहे मिलते। जबतक वह खुद बन्सी न बजाते तबतक हम उनसे मिल नहीं सकते थे।

बचपन से ही कृष्ण को बंसी बजाने का शौक था। बंसी तो उनकी हथियार की भाँति होती। मैं ताज्जुब थी, कैसे ये इतनी अच्छी तरह बंसी बजा सकते हैं। कृष्ण की बंसी की अनेक धुनों में मैं सदा झुमी रहती। कभी वह बंसी से ही रूलाते तो कभी लगता नाचने लग जाऊँ। विरह, उत्साह, शांत जैसे अनेक भाव वे बंसी से उत्पन्न कर सकते थे।

मैं कब कृष्ण को चाहने लगी मुझे पता नहीं लेकिन जब मालूम हुआ तो मैं उनके प्रति समर्पित भाव से सराबोर थी। वे भी मुझसे घनिष्ट हो गए थे। बचपन में ही हमारे बीच ऐसा प्यार पनपा की उसे महज शब्दों से व्यक्त नहीं किया जा सकता।

खास में हम दिन में गोपों के साथ मवेशी चराने जाते। यह जरूरी तो नहीं था लेकिन हमारे खेलने की जगह वही थी। गोकुल के सारे बच्चे मवेशियों के साथ वन में पहुँचते, नाचते, गाते, खेलते। हमारे नायक कृष्ण सभी के साथ उतनी ही मित्रता से पेश आते। सभी मुश्किलों का सामना करने के लिए तैयार थे। वे मजबुत तो उतने थे नहीं पर अत्यंत चालाख थे। बल की बजाय चतुराई से वे शत्रु को पराजित करते। बचपन से ही कृष्ण का नाम रौशन इसलिए हुआ था कि अपने से कई गुणा ताकतवर शत्रु को भी वे पराजित किया करते थे। सभी को लगता कि कृष्ण हमारे नायक हैं औ कुछ भी कर सकते हैं। ये हमें जिस किसी विपत्ति से भी बचा सकते हैं।

एक दिन हम मैदान में खेल रहे थे। अचानक जंगल से मवेशी डाँ..डाँ.. की आवाज करते हुए इधर उधर भागने लगे। मवेशी आतंकित हो गए थे। हम भी डरते हुए देखने लगे कि क्यों मवेशी ऐसे भाग रहे है। देखते ही देखते कुछ देर बाद जंगल से विशालकाय साँढ़ निकल पड़ा। ऐसा साँढ़ तो हमने कभी देखा नहीं था।

मवेशी इधर उधर भागने लगे, उनके साथ गोप भी भागने लगे। बलराम मेरे पास ही थे। उन्होंने मुझे न डरने के लिए कहा और पेड़ की ओट में छुपाया। मैं एक बड़े से बरगद की पेंड़ में चढ़ गई। पेड़ से ही मैंने उन दोनों को पेड़ पर चढ़ने के लिए पुकारा लेकिन वे तो साँढ़ से दिल्लगी करने लगे। साँढ़ आँखें तरेरकर उनकी तरफ दौड़ा। लम्बे सिंगों से कृष्ण की तरफ दौड़ते साँढ़ को देखकर मैं भयभीत हो गई और पेड़ की एक शाखा को जोड़ से पकड़कर चिपक गई। आक्रमण करने लिए दौड़ा साँढ़ बलसे आगे निकल गया था। दोनों को हँसते हुए सुनकर मैंने आँखें खोली। कृष्ण और बलराम दो तरफ हो गए थे। दोनों साँढ़ को अपनी तरफ बुला रहे थे। साँढ़ का क्रोध बड़ गया था और पहले से दूगनी गति में वह कृष्ण की तरफ बड़ चला था। साँढ़ पास आते ही वह फूर्ति से कूदकर दूसरी तरफ हो लिए और साँढ़ तेज गति से भागता हुआ एक पेड़ से जा टकराया। उसके सींग से पेड़ की बड़ी सी खाल उतर आई। पीड़ा से परेशान साँढ़ क्रोध के वेग में बलराम की तरफ दौड़ चला। इस बार दूसरे पेड़ से जा टकराया। साँढ़ क्रोध से जल रहे बाघ से भी खतरनाक दिखने लगा।

ऐसे ही वे बहुत देर तर साँढ़ को छकाते रहे। साँढ़ धीरे धीरे थकित और घायल होता गया। वह पहले की भाँति दौड़ तो नहीं सकता था लेकिन उसने अपना घमंड छोड़ा नहीं था। मैंने फिर देखा की कृष्ण दोनों हाथों से साँढ़ के सिंग पकड़े हुए थे। मैंने फिर डर के मारे आँखें बंद की। कुछ देर बाद क्या देखती हूँ कि कृष्ण साँढ़ के कंधे पर चढ़कर उसके सिंग उखाड़ने के लिए हिला रहे हैं। साँढ़ पीड़ा से छटपटाते हुए दौड़ने की कोशिश करने लगा। लेकिन थककर चूर हुआ था सो दौड़ नहीं पाया और वहीं लड़खड़ाकर गिर पड़ा। पीड़ा से चारों पैर फैलाए। कृष्ण साँढ़ के सिंग हिलाते जा रहे थे। अब बलराम भी आगे जाकर एक सिंग पकड़कर हिलाने लगे। दो भाइयों ने मिलकर देखते देखते साँढ़ को सिंग उखाड़कर मार डाला।

साँढ़ को मरता देख हम सब आश्चर्यचकित हो गए। उतने बड़े साँढ़ को इतने छोटे से दोस्तों ने ऐसे मारा था कि हम ही नहीं सारे गोकुलवासी ही चकित हो गए थे। इस घटना के बाद तो कृष्ण की चर्चा इतनी होने लगी कि लोग उन्हें विष्णु का अवतार ही मानने लगे।

*

अगले अङ्क में जारी....

 

नेपाली से अनुवादः कुमुद अधिकारी

Share |

टिप्पणियाँ

ramnath shivendra
very nice such type of work is very hard and you are doing so thanks again shivendra

ramnath shivendra
very nice

Eaku
अनुवाद पनि जस्ताको तस्तै,राम्रो


टिप्पणी लिखें

नाम :
टिप्पणी :