अंक 31वर्ष 5मई 2012

शर्त

- आर. आर. चौलागाईं

वह कॉलेज की एक होनहार छात्रा। नाम अप्सरा। रूप भी नाम जैसा। एम.ए. कर रही। स्पष्ट बोली। सबसे हँसने वाली। किसी से नरूठने वाली। आपद में जिस किसी को भी सहयोग करने वाली। नए जगहों पर घूमना उसका शौक।

घर में भी सबकी प्यारी। पति की परममित्र। बहु होकर भी सास-ससुर के लिए बेटी जैसी। एक छोटी बच्ची की माँ। एक कार्यालय में इमानदार और दक्ष कर्मचारी।

एक बार अप्सरा कार्यालय के काम से कुछ दिनों के लिए पश्चिम नेपाल के दुर्गम जिले पहुँची है। काम के सिलसिले में उस जिले के लोग, विभिन्न पार्टियों के नेता एवं कार्यकर्ता, पत्रकार, सुरक्षाकर्मी, अनेक ऑफिसों के बॉस एवं कारिन्दे आदिसे इनकी मुलाकात हर दिन होती है।

इसी तरह के एक जिले के दौरे में एक दिन वह पत्रकार सम्मेलन का आयोजन करती है। कार्यक्रम उपलब्धिपूर्ण बनता है। ऐसे में एक पत्रकार उसके करीब आता है और फिर मुलकाता करने का प्रस्ताव करता है। वह ना नहीं कह सकती।

बाजार के एक छोटे से रेस्तराँ में वे दोनों मिलते हैं।  पत्रकार मिलने की वजह कुछ इस तरह पेश करता है - 'अप्सरा जी, जब से आपको देखा और आपसे मिला, मेरे होश ठिकाने नहीं है। रात-दिन आपका ही चेहरा आँखों में रहता है। आपके अभाव में मेरी जिंदगी अधूरी रह गयी है। अगर आपको जीवनसाथी के रूप में न पा सका तो शायद मर जाऊँगा। चलिए शादी कर लें।'

अप्सरा कुछ देर तो बोल नहीं सकती। कुछ देर बात अपनी सारी बातें और हालात बता देती है। फिर भी पत्रकार जिद पर अड़ा हुआ है - 'अप्सरा जी कुछ फर्क नहीं पड़ता। आप अपने शौहर और बच्चों को छोड़ दें। मैं अविवाहित होकर भी आपको सहर्ष अपना सकता हूँ।'

अप्सरा मुश्किल में फँस जाती है। कैसे वहाँ से निकलले सुझता नहीं है। एक दिन का दौरा अभी बाकी है। वह एक उपाय सुझाती है - 'ठीक है जी, मैं आपके साथ शादी करूँगी। लेकिन मेरी एक शर्त आपको माननी होगी।'

पत्रकार शर्त मानने को तैयार है। शर्त की बात अगले दिन करने लिए सहमति करके वे अपने-अपने कामों में लग जाते हैं।

अगले दिन उसी जगह उनकी भेंट होती है। अप्सरा पत्रकार को अपना शर्त सुनाती है - 'आप तो हद कर दिया। मेरे लिए जान देने की बात करते हैं। आपके प्यार की कद्र करती हूँ। नतमस्तक हूँ। ठीक है, आपके लिए मैं मेरे शौहर और बच्चे भी छोड़ सकती हूँ। आपसे शादी करने के बाद भी कोई और आकर ऐसे जान देने लगे तो मुझे आपको भी छोड़ना पड़ेगा। क्या आप इसके लिए अनुमति दे सकते हैं ? मेरी शर्त यही है। आप मानने को तैयार हैं।'

'..........................' पत्रकार कुछ नहीं बोलता।

अप्सरा ही कहती हैं - 'ठीक है, मेरी शर्त अभी मानें ऐसा नहीं है। मैं आपके जवाब की प्रतिक्षा करूँगी।'

जिलेका काम खत्म कर अप्सरा घर लौट जाती। वर्षों बीत गए लेकिन उसे उस पत्रकार का जवाब नहीं मिला है।

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नेपाली से अनुवादः कुमुद अधिकारी।

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टिप्पणियाँ

राहुल शर्मा
Kahaniya

chandra bhushan pandey
such me himat aur dimag se kam lena hi jeevan ka rahasya hai. sundar sargarbhit kahani thanks.... aur ek bar, ki nepal se bhi hindi sahitya ki ganga prawahit ho rahi hai badhai ho .................

DHEERAJ SINGH
nice one

vivekbillore
bahoot khub

Kamlesh patel banswara
Mahila ki jeet haar uske apne bas se bahar nahi shart hai ki wo dimaag se kaam le. . . Hindi ki sarita me likhne ke liye aabhar

sudha
very very very nice

Youvraj Kaga
mushkil halaton me agar thande dimag or dherya se kam liya jaye to sari mushkien aasan ho jati hai...... kya khub laghukatha likhi hai...really aanand aa gaya. thanx.

Subhash Chand
Bahut khub Aisa charitra agar nari ka ho to bhartiy nari ki garima bani rahe

kapil kumar
Insan ko hamesa sahi marg par hi nirnay kar chalna chahiye ! aisa karne se insan har kar bhi jit jata hai .

satyendra singh 09918973494
wah

jayprakash
bahut accha laga pad kar


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