अँक 38वर्ष 14जुन 2021

आराम

- डॉ. रवीन्द्र समीर

डॉ. शर्मा सुबह पाँच बजे उठकर क्लिनिक जाते थे। जल्दी जल्दी क्लिनिकका काम खत्मकर वे अस्पताल पहुँचते थे। सैकड़ों मरीज़ों को देखकर वे शाम को दूसरे क्लिनिक पर जाते थे और देर रात घर लौटते थे। वर्षों तक ऐसे ही काम करने के बाद डॉ. शर्मा को लगा कि एक दिन आराम किया जाए। तो उन्होंने क्लिनिक और अस्पताल से एक दिन की छुट्टी ले ली।

डॉ. शर्मी सोच रहे थे कि भर सुबह सोएँगे, लेकिन सदा की भाँति पाँच बजे ही उठ गए। वे अधैर्य होने लगे। कभी पत्रिकाएँ पलटते, कभी टिवी देखते तो कभी परिवारजनों के साथ वक्त़ बिताने का प्रयास करते। लेकिन उनके दिमाग में क्लिनिक ही नाचता रहा - आज कितने मरीज़ आए होंगे ? उसे आज बुलाया था, न जाने क्या हुआ ? दूर दराज के मरीज़ रिपोर्ट दिखाने आए होंगे ........!

जब दोपहर हुआ तो उनके दिमाग में अस्पताल घुम रहा था - आज फलाँ से मुलाकात होनी थी, मेरे मरीज़ शायद वह देख रहा होगा, अनिता सिस्टर किसके संग बतिया रही होगी, फलाँ कंपनी अच्छे उपहार लेकर आया तो नहीं ...?...!

शाम को उनकी बेचैनी और बड़ गई - कितने मरीज़ आए होंगे ? कहीँ से कॉकटेल डिनर का आमत्रंण तो नहीं आया ? आज बहुत घाटा पड़ गया......।

सदा मस्त सोने वाले डॉ. शर्मा को उस रात नीद बिलकुल नहीं आई। उन्होंने खुद से सवाल पूछा - मैं आज आराम कर रहा हूँ या खुदको मानसिक यातना दे रहा हूँ ?

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नेपाली से अनुवादः कुमुद अधिकारी

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