अंक 37 | वर्ष 10 | दिसंबर 2017 |
सपने की बात
- उपेंद्र सुब्बा
कल रात सपने में
तागेरानिङ्वाफुमाङ# आईं
और कहा –
"लो कान्छा, जो कुछ छूओगे वह तुम्हारा हुआ !"
तब मैंने
मिट्टी छूआ
पत्थर छूआ
हवा छूआ
पानी छूआ
आग छूआ
सब के सब मेरे हो गए
और जम मैं खुद को छूने लगा तो जाग गया
फिर बाकी रात नीद नहीं आई
पछताता रहा
तुम्हें छूना था, छू नहीं पाया।
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नेपाली से अनुवादः कुमुद अधिकारी
#तागेरानिङ्वाफुमाङ – लिंबू जाति में स्वयंभू, सर्वव्यापी, निराकार और निर्गुण परमसत्ताको तागेरानिङ्वाफुमाङ कहा जाता है।
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