अंक 34 | वर्ष 9 | जनवरी 2016 |
पृथक संवाद
- रवीन्द्र समीर
मरिजों की जाँच के क्रम में एक अधेड़ पुरुष अनूठी भाव-भंगिमा लिए भीतर आए। नमस्कार किया और डॉ. शर्मा के दिखाए कुर्सी पर बैठ गए। ज्यादातर अस्पतालों में डॉक्टर और मरीज के बीच एक ही किस्म के संवाद होते हैं। लेकिन यह संवाद कुछ अलग था।
- आपका नाम ?
- नाम है तो श्यामप्रसाद, लेकिन प्रेस्क्रिप्सन में गणेशबहादुर लिख दीजिए ना !
- आपकी उमर ?
- हूँ तो इक्यावनका पर तैँतालिस लिख दीजिए न !
- पता ?
- पता तो पुतली सड़क है, कृपया सातदोबाटो लिख दीजिए।
डॉ. शर्मा ने सोचा मरीज भी कैसे कैसे आते हैं, इस पेसे में।
डॉक्टर के लिए "मरीज कौन है?" से ज्यादा महत्त्वपूर्ण "मर्ज क्या है?" होता है। इसलिए उन्होंने तहकीकात जारी रखी।
- आपको होता क्या है ?
- पेसाब में मवाद निकलता है, जलता है, सुपाड़ी में घाव भी है।
- बाहर जाकर कहीं कुछ किया था क्या ?
- डॉ. साहब से क्या छिपाना ! कभी कभार यार-दोस्तों के संगत में पड़कर आदत पड़ गई।
- तब तो यौन संपर्क से संक्रमण होनेवाले रोगों की जाँच के लिए आपके खून की जाँच करवानी होगी। यह सब करवाकर आइए।
डॉ. शर्मा जिज्ञासु हो रहे थे, क्यों यह आदमी अपना नाप पता गलत लिखवा रहा है। जब रहा नहीं गया तो उन्होंने पूछा - जरा बताइए तो क्यों आपने अपना नाम और पता दूसरा ही लिखवाया?
वह अधेड़ बोले - घर में पढ़ेलिखे बेटे हैं। पढ़ीलिखी बेटियाँ हैं। बीवी को शक की बिमारी है। अगर किसी ने प्रेस्प्क्रिप्सन देख भी लिया तो "ऑफिस के दोस्त का है।" कहकर टाल तो सकते हैं।
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नेपाली से अनुवादः कुमुद अधिकारी
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