अङ्क 32वर्ष 6अगस्त 2013

देवता

                                                                                                            -- दीपक कथित

वह सोचता था – इस संसार में देवता से बढ़कर कोई नहीं। देवता को खुस किया तो सारी इच्छाएँ पूरी होंगी। कुछ करना नहीं होला।

 

उसके बाद उसने देवता को खुस रखने की अनेक कोशिशें की। पूजा, प्रार्थना, नैवेद्य आदि समर्पण किए, पैसे चढ़ाए, भाकल किए। अपने को देवता में ही लीन रखा। फिर भी उसकी इच्छाएँ पूरी नहीं हुईं। अपना इतना ज्यादा परिश्रम खर्च हो जाने पर भी कुछ नहीं होने से उसे देवता के प्रति अनास्था उत्पन्न हो गई। गुस्सा भी बहुत आया। उसने थूका, देव-आसनको तोड़ डाला। फिर भी देवता ने कुछ नहीं किया।

 

उसे आश्चर्य हो रहा था, पूजा करने पर भी, गाली देने पर भी देवता के चुप रहने पर। आखिर देवता क्या है ? क्यों पूजा करने पर भी कुछ नहीं करता ? क्यों गाली देने पर भी चुप बैठता है ? इस सवाल का जबाव उसे नहीं मिला तो वह व्यग्र हो उठा। बहुत वर्षों तक वह भटकता रहा।

 

अचानक उसे लगा उसने देवता पहचान लिया है। इसलिए तो देवता देवता है। अगर पूजा करने पर खुस और गाली देने पर नाखुस रहने लगे तो क्या देवता ? इन्सान और देवता में फर्क ही क्या ?

 

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नेपाली से अनुवादः कुमुद अधिकारी।

 

भाकल - भगवान से वर माँगना और पूरी हो जाने पर चढ़ावे का वादा करना।

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टिप्पणियाँ

Upendra Kumar Garg
This is a very simple story. There is no literary touch. Thankyou This is only an entertainment story.


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