अंक 31वर्ष 5मई 2012

कविता की लाश

                                            - श्रीशीशा राई

इस बस्ती में प्रवेश निषेध से पहले

पगडंडी में अवरोध खड़ी करने से पहले

घंटाघर, धरहरा, स्वयंभू गिराने से पहले

पाटन की कबूतरें गिराने से पहले

कलियों के डिस्को में रमने से पहले

आकांक्षाएँ, सपने, विश्वास मिटने से पहले

बम, गोली, बंदूक और विस्फोट से देश बिखरने से पहले

 

कविता जन्म ले चुकी थी

कविता पहुँच चुकी थी

कविता लिखी जा चुकी थी

 

इस बस्ती ने, समय ने

इस अवस्था ने, देश ने

कविता की आगमन को महसूस नहीं किया

कविता को नहीं पहचाना, याद नहीं किया

कविता किसी से नहीं पढ़ी गई, नहीं समझी गई

उपेक्षित बनकर

संपूर्णता की मौतपर

कविता खुद मर गई

कविता लाश बन गई

 

आजकल तारे

मुझे धमकाते हैं......

"अगर लाश ही होना था

तो गिरे क्यों थे आकाश से..?"

--

नेपाली से अनुवादः कुमुद अधिकारी

 

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टिप्पणियाँ

Dr.Brajesh kuma Singh,ABPS,Raipur
Ek aur achchi kavita se samana huaa..abhi kisi shreshata kavi se tulana bemani hai..per kavita me gahrayee v gambheerata vidyaman hai..

sudha
kavita to bahut hi sunder hai


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