अँक 38 | वर्ष 14 | जुन 2021 |
यथार्थ
- सागर काफ्ले
सदा छोटी पड़ती रहीं मेरी कविताएँ
कभी खिंच नहीं पाईं
जैसे मेरी खुसियाँ
कभी लंबे समय तक टिक नहीं पाईं
फिर
कभी अंत नहोने वाले मेरे दुःख को
मैं
कविता बना नहीं सका।
*
नेपाली से अनुवादः कुमुद अधिकारी
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