अंक 36 | वर्ष 10 | अप्रैल 2017 |
उषा हमाल की तीन कविताएँ
अंतहीन शृंखला
कुछ दिन पहले
मेरे घर के बैठक कक्ष में
पूरी तरह खिला हुआ
‘ऑफ्रिकन भ्वायलेट’
चेहरा मलीन बनाता मिला
आज वह मुरझा गया ।
कुछ समय पहले
जन्मा गोलमटोल बालक
फूल की तरह खिला हुआ था
कालांतर में वह चाँद सा हो गया
चेहरे भर समय की झुर्रियाँ बटोरकर
आज वह नलौटने वाले राह पर चला गया ।
कहाँ है अंतर
उस ऑफ्रिकन भ्वायलेट और उस बालक के
जन्म और मृत्यु में ?
दो बिलकुल अलग किस्म के
इन जन्म और मृत्यु को
एक ही साँचें मे ढालकर
कहाँ भाग चला सर्जक
हमें इस अंतहीन शृंखला में बाँधकर ?
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दूरी
जीवन की राह में पड़ने वाले
पहाड़ के पर्दों पीछे छिपे
आत्मीय चेहरे और मेरे बीच
वक़्त ने बनाई है लंबी दूरी
उसी दूरी के भीतर कैद हूँ मैं।
दूरी की परिभाषा
भौतिक भी हो सकती है
दूरी की परिभाषा
आत्मिक भी हो सकती है
कभी कभी
दूरी की परिभाषा नहीं होती
अपरिभाषित दूरी में भी हैं मेरे अपने
उसी दूरी के भीतर कैद हूँ मैं।
कभी कभी
दिल दीवारें खड़ी करता है
कभी कभी
दीवारें खड़ी करती हैं दिल
मजबूत होती हैं आलीशान दीवारें
दीवारों और दिलों के बीच
इस द्वन्द्व में बंदी बनी
मेरी अपनी अनुभूतियों के भीतर
कैद हूँ मैं।
-0-
प्रेम का मूल्य
प्रेम से उधर का रास्ता
मत दिखाना मुझे
मुश्किल है वह रास्ता
चट्टान जैसे
मैं चल नहीं पाउँगी
प्रेम से उधर का रास्ता ।
नंगे पैरों से
पहाड़ के नुकीले पत्थरों कों कुचलते हुए
चलने का अनुभव अगर तुम्हारे पास हो
तो समझो,
उससे भी मुश्किल है
प्रेम से उधर का रास्ता ।
अगर तुम भारी बोझ ढोकर
चढ़ाई चढ़े हो
तो समझो,
उतना ही भारी होता है
प्रेम से उधरका जीवन
और कठोर होता है
जनवरी-फरवरी का
सड़क जीवन जैसा ।
समझो,
प्रकृति ने हमें
दिया प्रेम
पर वह प्रेम का मूल्य समझाना
भूल गई।
-0-
नेपाली से अनुवादः कुमुद अधिकारी
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