अंक 35 | वर्ष 10 | जनवरी 2017 |
अंतिम बैंच से
-विप्लव ढकाल
मैं अंतिम बैंच में बैठूँगा
गीतांजली मिस !
प्लीज मुझे
यहाँ से नउठवाएँ !
पहले बैंच में बैठकर तो मैं
कुछ भी देख नहीं पाता
क्योंकि वहाँ से खाली ब्लैक बोर्ड देखता हूँ
या फिर आपकी जूतियाँ देखता देखता हूँ
पिछले बेंच से
पूरी कक्षा दिखाई देती है,
नाच रहीं आप
और सो रहे मेरे दोस्त
मैं यहाँ से
एक ही नजर में देख सकता हूँ !
आगे से
जिन्हें आप देख रही हैं,
मैं उन्हें ही पीछे से देख रहा हूँ !
फर्क सिर्फ इतना है -
कि आप उनकी आँखें, नाक, ठोडी
देख रही हैं,
मैं उनकी पीठ देख रहा हूँ !
आप शायद
मुझे सबसे पसंद आनेवाली लड़की का
शिर का बुलबुल,
ललाट का चाँद,
देख रहीं हैं !
मैं उसकी पीठ में लहराते केशों की
नागवेली
और सफेद युनिफॉर्म के भीतर
थोड़ा सा ही दिखाइ देनेवाले
कसे हुए
दिल कीँ भाँति
सुनहरा क्लिप देख रहा हूँ !
अंतिम बैंच में अकेले बैठकर
कोई आवाज किए बगैर
किसीको डिस्टर्ब किए बगैर
चुपचाप चुपचाप
मैं अपने जीवन के
अक्षरों से खेल रहा हूँ !
गीतांजली मिस !
प्लीज मुझे
यहाँ से मत उठवाएँ !
-0-
नेपाली से अनुवादः कुमुद अधिकारी
टिप्पणियाँ |