अंक 30 | वर्ष 4 | जुलाई 2011 |
तथास्तु
-- डॉ. रवीन्द्र समीर
ईश्वरको अपनी सृष्टि से वितृष्णा हुई। कोई आलीसान महलों में सुख भोग रहे थे तो कोई सड़कों पर सो रहे थे। इस स्थिति के
मध्येनजर ईश्वर नारद को लेकर दान कर्म के लिए पृथ्वी पर उतर आए।
'प्रभु ! मेरा पाँच मंजिला मकान है, दस मंजिला बनाना चाहता हूँ।" ईश्वर ने यथेष्ठ धन देकर उसको छोड़ दिया।
'प्रभु मेरी मारूती पुरानी पड़ गई। नया प्राडो, पजेरो दिलवा दें।' ईश्वर ने उन्हें महंगी कार दिलवा दी।
'प्रभु, शहर में मेरी पाँच रोपनी जमीन है। बाग, स्वीमिंग पूल, खेल मैदान के लिए जमीन कम पड़ रही है।' ईश्वर ने काफी जमीन खरीद दी।
'प्रभु मेरे साथ सिर्फ पाँच किलो सोना है। अनाथ पर कृपा करें।' ईश्वर ने असर्फियाँ दान दीं।
ऐसे ही दान करते रहने से ईश्वर का थैला खाली हो गया। उसके बाद ईश्वर झोपड़पट्टी की तरफ गए। लोगों कि स्थिति देखकर उन्हें
दुःख हुआ लेकिन दान करने के लिए कुछ बचा नहीं था। ईश्वर शर्म से लाल होते हुए झोपड़पट्टीवालों के सामने प्रकट हुए। उन्हें घोर संकट ने आ
घेरा - अगर ये लोग कुछ मांग बैठे तो क्या दें।
'प्रभु ! हमें दया करें।' लोगों ने कहा।
'तथास्तु।' ईश्वर ने विजयी भाव के साथ कहा।
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नेपाली से अनुवादः कुमुद अधिकारी
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