अंक 29 | वर्ष 3 | जुलाई 2010 |
कुर्सी
-- हरिप्रसाद भण्डारी
उसे देखकर कुर्सी इतना आनंदित हुआ कि वह हँसहँस के लोटपोट हो गया। उससे रहा नहीं गया तो पूछा- ‘क्यों इतना हँस रहे हो ?’
कुर्सी ने कहा – ‘अरे मैं तो खुसी से हँस रहा था। अब तक क्विंटल के लोगों को ढोते ढोते मेरी तो पसलियाँ तुड़ गई थीं। अब आप इतने हलके हैं कि हँसी नहीं थम रही है।
कुर्सी की बात सुनकर वह मुसकुरा उठा था।
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नेपाली से अनुवादः कुमुद अधिकारी।
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