अँक 38 | वर्ष 14 | जुन 2021 |
जबाव ना होने पर
- मनु मन्जिल
किसी द्वारा पूछे गए सवाल के जबाव में
परसों शाम मैंने
अपने कुछ गीत सुना डाले।
आवाज भरकर
शब्दों की शून्यता के भीतर
मैंने खुदको वाचाल दिखाया।
उसको
रहस्यों के किनारों पर विचरण कर
घोँसले लौटते हुए पंछी दिखाए
अपनी कहानियाँ सुनाई
अपनी कविताएँ सुनाई।
वह ऐसे चला गया
मानो उसे जबाव मिल गया हो,
क्या जबाव मिला उसे ?
अभी मैं वही जबाव ढूँढ़ रहा हूँ।
*
नेपाली से अनुवादः कुमुद अधिकारी
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